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यऽइ॒मा विश्वा॒ भुव॑नानि॒ जुह्व॒दृषि॒र्होता॒ न्यसी॑दत् पि॒ता नः॑। सऽआ॒शिषा॒ द्रवि॑णमि॒च्छमा॑नः प्रथम॒च्छदव॑राँ॒२ऽआवि॑वेश ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। इ॒मा। विश्वा॑। भुव॑नानि। जुह्व॑त्। ऋषिः॑। होता॑। नि। असी॑दत्। पि॒ता। नः॒। सः। आ॒शिषेत्या॒ऽशिषा॑। द्रवि॑णम्। इ॒च्छमा॑नः। प्र॒थ॒म॒च्छदिति॑ प्रथम॒ऽछत्। अव॑रान्। आ। वि॒वे॒श॒ ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (ऋषिः) ज्ञानस्वरूप (होता) सब पदार्थों को देने वा ग्रहण करनेहारा (नः) हम लोगों का (पिता) रक्षक परमेश्वर (इमा) इन (विश्वा) सब (भुवनानि) लोकों को व्याप्त होके (न्यसीदत्) निरन्तर स्थित है और जो सब लोकों का (जुह्वत्) धारणकर्त्ता है (सः) वह (आशिषा) आशीर्वाद से हमारे लिये (द्रविणम्) धन को (इच्छमानः) चाहता और (प्रथमच्छत्) विस्तृत पदार्थों को आच्छादित करता हुआ (अवरान्) पूर्ण आकाशादि को (आविवेश) अच्छे प्रकार व्याप्त हो रहा है, यह तुम जानो ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य लोग जो सब जगत् को रचने, धारण करने, पालने तथा विनाश करने और सब जीवों के लिये सब पदार्थों को देनेवाला परमेश्वर अपनी व्याप्ति से आकाशादि में व्याप्त हो रहा है, उसी की उपासना करें ॥१७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(यः) (इमा) इमानि (विश्वा) विश्वानि (भुवनानि) (जुह्वत्) आददत् (ऋषिः) ज्ञाता (होता) दाताऽऽदाता वा (नि) (असीदत्) सीदति (पिता) पालकः (नः) अस्माकम् (सः) (आशिषा) आशीर्वादेन (द्रविणम्) धनम् (इच्छमानः) अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम् (प्रथमच्छत्) यः प्रथमान् विस्तृतान् छादयति (अवरान्) अर्वाचीनानाकाशादीन् (आ) समन्तात् (विवेश) विष्टोऽस्ति ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य ऋषिर्होता नः पिता परमेश्वर इमा विश्वा भुवनानि न्यसीदत्, सर्वाँल्लोकान् जुह्वत्, स आशिषा द्रविणमिच्छमानः प्रथमच्छदवरानाविवेशेति यूयं विजानीत ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वे मनुष्याः यः सकलस्य जगतो रचको धारकः पालको विनाशकः सर्वेभ्यो जीवेभ्यः सर्ववस्तुप्रदः परमेश्वरः स्वव्याप्त्याकाशादिषु प्रविष्टोऽस्ति, तमेव सततमुपासीरन् ॥१७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व जगाचा निर्माणकर्ता, धारणकर्ता, पालकनकर्ता, संहारकर्ता व सगळ्या जीवांना सर्व पदार्थ देणारा असा दाता परमेश्वरच आहे. त्याने सर्व आकाश इत्यादी व्यापलेले आहे. त्याचीच माणसांनी उपासना करावी.